बाई राजल का जन्म

संत श्री कान्हाराम[19] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-183]: तेजाजी के जन्म के तीन वर्ष बाद ताहड़ जी की बड़ी पत्नी रामकुँवरी की कोख से विक्रम संवत 1133 में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया राजलदे (राजलक्ष्मी) । बोलचाल में उसे राजल कहा जाता था। वह तेजाजी के बलिदान के बाद लगभग 26 वर्ष की आयु में विक्रम संवत 1160 के भादवा सुदी एकादश को धरती की गोद में समा गई।

खरनाल के एक किमी पूर्व में एक तालाब की पाल पर इनका मंदिर बना हुआ है। जन मान्यता के अनुसार जहां मंदिर बना है उसी स्थान पर एक साथी ग्वला द्वारा तेजाजी के बलिदान का समाचार सुन वह धरती की गोद में समा गई थी। लोगों की मान्यता , आस्था है कि मंदिर में लगी प्रतिमा भूमि से स्वतः प्रकट हुई थी।

तेजाजी ने जब ससुराल के लिए विदाई ली, उससे पहले अपनी बहन राजल को ससुराल से लेकर आए थे। राजल का ससुराल अजमेर के पास तबीजी गाँव में था। वहाँ के राव रायपाल जी के पुत्र जोराजी(जोगजीसिहाग से राजल का विवाह हुयाथा। राजल के एक पुत्र भी था।

कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार तेजाजी के एक और भोंगरी या बुंगरी अथवा बागल बाई के नाम से एक छोटी बहिन थी। लेकिन धौलिया वंशी खरनाल के जाटों के डेगाना निवासी भैरू राम भाट की पौथी में छोटी बहन का उल्लेख नहीं है। वहाँ तेजाजी के राजल नाम की छोटी बहन बताई गई है।

जमीन में समाने के बाद तेजाजी की बहिन का जो मंदिर बना हुआ है वह बुंगरी माता का मंदिर कहलाता है। शायद इसी बुंगरी नाम की गफलत के कारण बुंगरी नामक छोटी बहन और होने की भ्रांति हुई।


[पृष्ठ- 184]: काफी खोज करने के बाद पता चला कि शरीर पर उबरने वाले मस्सों को मिटाने के लिए आमजन इस मंदिर में बुहारी (झाड़ू) चढ़ाते हैं। झाड़ू को स्थानीय भाषा में बुंगरी कहा जाता है। बुंगरी चढ़ाने से इनका नाम बुंगरी माता प्रसिद्ध हो गया है। बुंगरी माता का मंदिर तथा तालाब (जोहड़) बड़ा रमणीय है। इस तालाब की मिट्टी की पट्टी आँखों पर बांधने से आँखों की समस्त बीमारियाँ मिट जाती हैं।

पास ही बुंगरी माता (राजल दे) की सहेली जो तेजाजी को माँ जाया भाई जैसा मानती थी उसकी भी समाधि मौजूद है। कहते हैं कि वह सहेली भी राजल के साथ धरती में समा गई थी। यह सहेली कौन थी इसका ठीक-ठीक पता नहीं है। कुछ लोग उसे नायक जाति की तो कुछ लोग मेघवाल जाति की कन्या बताते हैं।

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